
मनेंद्रगढ़ की ‘घरौंदा’ संस्था पर सवाल: सेवा भाव या संदेह का घेरा?
मनेंद्रगढ़, चैनपुर से विशेष रिपोर्ट
चैनपुर स्थित ‘घरौंदा’ नामक संस्था मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चियों के लिए एक सहारा बनकर सामने आई है। यह संस्था वर्षों से इन बच्चियों की देखरेख, पालन-पोषण और पुनर्वास का कार्य कर रही है।
कागजों पर यह एक उत्कृष्ट समाजसेवी पहल के रूप में दर्ज है और यह कहा जाता है कि यह एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) के माध्यम से संचालित होती है, जिसे शासन और समाज दोनों का समर्थन प्राप्त है।
सेवा का भाव अपने आप में एक पूज्य कार्य है। हम यह मानते हैं कि संस्था के पीछे सेवा भाव अवश्य होगा, परंतु सवाल उठता है कि अगर यह सेवा भाव इतना ही पवित्र और पारदर्शी है तो उसे समाज की नजरों से क्यों छिपाया जा रहा है?
रिटायर्ड शिक्षक सतीश उपाध्याय द्वारा सोशल मीडिया में इस विषय को बार बार रखा जाता है, उनके अनुसार
क्यों नहीं मिलती मीडिया या समाज सेवकों को इजाज़त?
हाल के दिनों में यह बात तेज़ी से चर्चा का विषय बनी है कि कोई भी पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता या बाहरी पर्यवेक्षक जब ‘घरौंदा’ संस्था में अंदर प्रवेश करना चाहता है, तो उसे रोक दिया जाता है। संस्था द्वारा पत्रकारों को अंदर जाने से बार-बार रोका गया है, और यही रवैया अन्य जागरूक नागरिकों के साथ भी अपनाया जा रहा है।
सवाल यह है —
अगर कार्य पवित्र है, तो पारदर्शिता से क्यों डर?
क्या भीतर कोई ऐसा सच छुपा है जो उजागर होने से संस्था की छवि को धक्का पहुंचा सकता है?
या फिर यह केवल सुरक्षा के नाम पर एक पर्दा डालने की कोशिश है?
संस्था की चुप्पी भी संदेह को जन्म देती है
जब भी किसी संस्था में समाज के सबसे असहाय वर्ग – मानसिक रूप से असक्षम बच्चियों – का जीवन जुड़ा हो, तब पारदर्शिता और जवाबदेही और भी ज़रूरी हो जाती है। परंतु ‘घरौंदा’ की चुप्पी और गोपनीयता कई असहज सवालों को जन्म देती है:
क्या बच्चियों के साथ वहां उचित व्यवहार हो रहा है?
क्या उनकी देखरेख में कोई लापरवाही या शोषण तो नहीं हो रहा?
अगर सब कुछ ठीक है, तो मीडिया की आंखों से डर क्यों?
*सूत्रों से पता चला है कि रात में यहां बच्चियों की तेज रोने की आवाज भी आती है, जैसे उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया गया हो, यह कहां तक सही है ?
जब इसकी जांच होगी तब पता चलेगा कि यहां सुरक्षित रखा जाता है या प्रताड़ना भी दिया जाता है, यह नियमित जांच सेह स्पष्ट होगा।*
समाज को जानने का हक़ है
सरकारी सहयोग, जनसमर्थन और समाज की उम्मीदों पर बनी यह संस्था समाज की जिम्मेदारी भी है। यह आवश्यक है कि:
संस्था स्वतंत्र जांच के लिए दरवाजे खोले।
मीडिया और समाजसेवियों को उचित निरीक्षण का अवसर दे।
अपनी कार्यप्रणाली को पारदर्शी और जवाबदेह बनाए।
निष्कर्ष
सेवा भावना जितनी बड़ी है, उससे बड़ी होती है जवाबदेही और पारदर्शिता। घरौंदा संस्था यदि सच में एक आदर्श मॉडल बनना चाहती है, तो उसे संदेह की दीवारों को गिराना होगा और समाज के प्रति खुला दृष्टिकोण अपनाना होगा।
यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह चुप्पी शंका को जन्म देगी, और शंका कहीं न कहीं सत्य की ओर इशारा करती है।
> सेवा को छुपाया नहीं जाता, सेवा तो स्वयं बोलती है। अगर ‘घरौंदा’ पवित्र भाव से चल रहा है, तो उसे खुलकर समाज के सामने आना चाहिए।