
“स्वच्छ भारत की खुली पोल – आत्मानंद स्कूल और शिक्षा विभाग के संयुक्त टॉयलेट की दुर्दशा”
मनेद्रगढ़, एमसीबी:
जहां एक ओर सरकार स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छता के लाख दावे कर रही है, करोड़ों खर्च कर ‘हर घर शौचालय’ का सपना दिखा रही है, वहीं जमीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
जिले के स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय मनेंद्रगढ़ और जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के संयुक्त टॉयलेट की स्थिति देख किसी भी जागरूक नागरिक का सिर शर्म से झुक जाए।
यहां शौचालय नहीं, हादसों का खुला निमंत्रण है।
जर्जर टॉयलेट की छत कभी भी भरभराकर गिर सकती है। दीवारों में लंबी-लंबी दरारें हैं, ऊपर से पानी लगातार टपकता है। दीवारों के फटने और छत से रिसाव के चलते कर्मचारी और शिक्षक रोज खतरे में काम करने को मजबूर हैं।
महिला कर्मचारियों के लिए अलग से नहीं है सुरक्षित प्रसाधन।
महिला टॉयलेट का दरवाजा तक टूटा हुआ है — बस एक कब्जे के सहारे लटक रहा है। यह न सिर्फ सरकारी कार्यप्रणाली की पोल खोलता है, बल्कि महिला सम्मान और उनकी सुरक्षा के दावों पर करारा तमाचा है।

सांपों का अड्डा बन चुका है टॉयलेट!
स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि कई बार यहां शौचालय में सांप दिखाई दे चुके हैं। एक बार सांप दिखने के बाद महिला कर्मचारी और छात्राएं कई दिनों तक टॉयलेट जाने से डरती रहीं। यह डर हर दिन उनके साथ बना रहता है। क्या किसी की जान चली जाए तभी जागेगा प्रशासन?
नया टॉयलेट बनकर तैयार है… लेकिन?
सबसे हास्यास्पद और दुखद बात ये है कि एक नया शौचालय तो बनकर तैयार है, परंतु वह किसी ‘माननीय’ के उद्घाटन का इंतजार कर रहा है! यानी महिला कर्मचारी और स्कूली बच्चे तब तक पुराने जर्जर टॉयलेट में जान हथेली पर रखकर जाते रहें, क्योंकि नेताओं का फीता काटना अभी बाकी है।
प्रश्न यह है: कब तक?
कब तक टॉयलेट ऐसे ही जर्जर हाल में रहेंगे?
कब होगा महिलाओं और बच्चों की सुविधा और सुरक्षा का ध्यान?
क्या कोई हादसा होने का इंतजार कर रही है शिक्षा विभाग की प्रशासनिक मशीनरी?
सरकारी तंत्र की यह संवेदनहीनता शर्मनाक है।
यदि अब भी शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन नहीं जागा तो वह दिन दूर नहीं जब किसी शिक्षक, छात्र या कर्मचारी की जान की कीमत पर ये टॉयलेट चर्चा में आएंगे। तब दोष एक-दूसरे पर मढ़े जाएंगे, और किसी निरीह कर्मचारी को निलंबित कर खानापूर्ति कर दी जाएगी।
सवाल यही है – क्या टॉयलेट का उद्घाटन ज़रूरी है, या कर्मचारियों और बच्चों की जान?
कब सुधरेगा सिस्टम?
क्या स्वच्छ भारत सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगा?